फ्रेंच दार्शनिक Denis Diderot¹ द्वारा प्रतिपादित किया गया एक ऐसा सामाजिक प्रभाव है है जहां कभी अगर हम एक नई और महंगी वस्तु खरीदने हैं तो हमें ऐसा आभास होता है की हमारे पास पहले से जुटी हुई वस्तु उस नई वस्तु की पूरक नहीं होती फिर फिर हम खपत के एक चक्र में फंस जाते हैं और नई वस्तुओं को जिनकी हमें जरूरत भी ना हो खरीदने लगते हैं.
Show your support
Write a comment ...